Shri Lakshmi Vyayam Mandir Jhansi, Vyamyamshala Jhansi, LVM Jhansi |
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श्री लक्ष्मी व्यायाम मंदिर (व्यायामशाला), झांसी, (उ.प्र.)
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स्व.सीताराम गुप्त


संस्था को वट वृक्ष के रूप में विकसित करने वाले आदरणीय स्वर्गीय श्री सीताराम गुप्त (बड़े भाई साहब) का जीवन परिचय

पूर्व प्राचार्य का संदेश

बुन्देलखण्ड की वीर भूमि में अनेक सपूतों ने जन्म लिया। श्री सीताराम जी गुप्त उन्हीं में से एक हैं जो आजीवन खेलकूदों और समाज सेवा में सलग्न रहे। स्व० सीताराम गुप्त का जन्म अगस्त 1933 को झाँसी जिले के ग्राम परसर में एक प्रतिष्ठि गहोई वैश्य परिवार में हुआ। इनके पिता स्व० हरप्रसाद मोदी अपने क्षेत्र के रईस लोगों में गिने जाते थे, इनकी माता का नाम श्रीमती राधारानी था।
प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव में पूरी करने के पश्चात श्री गुप्तजी 1946 में झाँसी आ गये और यहीं माध्यमिक और उच्च शिक्षा पूरी की। आप जब 1948 में कक्षा आठ में अधय्यनरत थे तभी से श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी में सस्थापक गुरूदेव अन्नाजी के शरण में आकर जिम्नास्टिक्स् एवं मल्लखम्ब का प्रशिक्षण प्राप्त करने लगे और उनके प्रिय शिष्य हो गये। अपने स्वस्थ्य शरीर अपनी बुद्धिमतता, विवेकशीलता, क्रान्तिकारी विचारधारा एवं नेतृत्व क्षमता के कारण ही अति शीघ्र श्री सीताराम गुप्त ने श्री लक्ष्मी व्यायाम मंदिर झाँसी की बागडोर सम्भाल ली और श्री लक्ष्मी व्यायाम मंदिर में 1952-53 में वह मुख्य शिक्षक बनकर संस्था के प्रमुख कार्यकर्त्ता बन गये। इसके पश्चात् वह अपने गुरूजी अन्नाजी और अपने वरिष्ठ साथियों रामसेवक नायक, सुन्दरलाल महरोत्रा, जयचन्द आर्य, बाबू वासुदेव प्रसाद अग्रवाल, कालूराम राय, कालिका प्रसाद अग्रवाल, रामसेवक अग्रवाल, नरेश चन्द अग्रवाल, डा० पंडित विश्वनाथ शर्मा, बाबूलाल लहारिया, शंकर लाल लाहरिया, गोविन्द सिंह, ओम प्रकाश कोहली, गिरजाशंकर तिवारी, सी० के० शर्मा, मूलचन्द सिकोरिया, रामदास वर्मा तथा नाथूलालजी आदि के साथ मिलकर संस्था में जिम्नास्टिक्स्, मल्लखम्ब, हॉकी, कुश्ती आदि खेलों के विकास और संस्था के निर्माण आदि कार्य में लगे तथा संस्था के चहुमुखी विकास में अपना सम्पूर्ण समय देनें लगे।
वर्ष 1965 में संस्था प्रांगण में विद्यालय पारम्भ हुआ जो 1970 में हाई स्कूल व 1976 में इण्टर कॉलेज के रूप में विकसित हुआ। 1970 तक आप झाँसी के प्रेमनगर स्थित हाई स्कूल । कर्मठ एवं अनुशासनप्रिय अध्यापक थे परन्तु श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर प्रबन्ध समिति के प्रयासों से आप 1970 में श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर हाई स्कूल के प्रधानाचार्य पद पर आसीन हुये। तभी से संस्था श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झांसी ने विकास की ओर अपना कदम बढ़ाना प्रारम्भ कर दिया। श्री गुप्तजी श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर में पहले से एक कर्मठ और लगनशील एवं सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्यरत थे परन्तु 1970-71 में प्रधानाचार्य का कार्य ग्रहण करने के पश्चात उन्होंने संस्था में निर्माण कार्य, खेलकूदों के मैदान, जिमनेजियम आदि के निर्माण में शक्ति लगा दी और शीघ्र ही अपनी क्षमताओं के कारण श्री सीताराम गुप्त एक अनुशासन प्रिय, ईमानदार एवं कर्मठ प्राचार्य के रूप में प्रसिद्ध हो गये।
उन्होंने 1960 से लेकर अपने अन्तिम समय 2001 तक संस्था में जिम्नास्टिक्स्, मल्लखम्ब, कुश्ती, हॉकी कबड्डी, बालीबॉल तथा अन्य खेलकूदों के प्रादेशिक व राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता आयोजन में अपनी सक्रिय भूमिका का निर्वाह किया। श्री गुप्तजी नित्य सायं एवं प्रातः जिम्नास्टिक्स्, मल्लखम्ब तथा भारतीय व्यायाम के प्रशिक्षण में स्वयं संलग्न रहते थे। उनकी सक्रियता और प्रयास का ही परिणाम रहा कि 1965 से 1990 तक संस्था के जिम्नास्टिक्स् खिलाड़ियों ने प्रादेशिक व राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों स्वर्ण, रजत व कांस्य पदक प्राप्त किये। उनके सफल प्रशिक्षण एवं प्रयासों का फल था कि संस्था के जिम्नास्ट श्री अशोक गुप्ता ने अखिल भारतीय स्कूल जिम्नास्टिक्स् में लगातार तीन वर्ष 1978 से 1980 तक व्यक्तिगत चैम्पियनशिप प्राप्त की और 1980 से 2001 तक संस्था में मल्लखम्ब खिलाड़ियों ने प्रति वर्ष राष्ट्रीय प्रतियोगिता में अनेकों पदक प्राप्त किये। वर्ष 2000-2001 में संस्था के मल्लखम्ब खिलाड़ी शैलेष सहगल ने 18वीं राष्ट्रीय प्रतियोगिता में संस्था के लिये इतिहास में पहला स्वर्ण लेकर संस्था का गौरव बढ़ाया जो श्री गुप्तजी की कठिन तपस्या का ही परिणाम था। यह भी गौरव का विषय रहा कि श्री शैलेष राहगल को इस वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लक्ष्मण पुरस्कार से सम्मानित किया है जो उत्तर प्रदेश के गल्लखम्न खेल के इतिहास में सबसे बड़ी उपलब्धि है और इसका श्रेय भी स्व० बड़े भाई साहब सीता राम जी गुप्त को ही जाता है।
1960-61 में श्री सीताराम जी गुप्त ने घूमते हुये बाचल मल्लखम्ब का आविष्कार किया। वर्तमान में संस्था में यह मल्लखम्ब 32 बोतलों पर आरोपित करके प्रदर्शित किया जाता है जो मल्लखम्ब जगत की एक अद्भुत एवं अनूठी देन है।
1994 तक वह श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर इण्टर कॉलेज के प्रधानाचार्य रहे। उनके प्रधानाचार्य काल में विद्यालय ने झाँसी मण्डल में एक आदर्श, अनुशासित संस्था के रूप में जो ख्याति प्राप्त की उसे भुलाया नही जा सकता। वह 30 जून 1994 को इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य पद से सेवा निवृत्त हुये।
उन्होंने 1970 से 2001 तक संस्था में आय का स्थाई स्त्रोत बनाने हेतु दुकानों का निर्माण कराया साथ ही श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर इण्टर कॉलेज, महारानी लक्ष्मी बाई बाल मन्दिर, विशाल जिमनेजियम, शारीरिक प्रशिक्षण महाविद्यालय तथा विशाल एवं भव्य पैवेलियन का निर्माण कराकर सम्पूर्ण श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी परिसर को सुन्दर व आकर्षक बना दिया।
उनकी पिछली 44 वर्षों की सेवाओं को ध्यान रखते हुये प्रबन्ध समिति ने इण्टर कालेज से सेवा निवृत्त होने के पश्चात उन्हें महारानी लक्ष्मी बाई शारीरिक प्रशिक्षण महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर नियुक्त किया, जहाँ वह 1994 से जीवन के अन्तिम क्षणों तक अपनी अवैतनिक सेवायें देते रहे।
श्री गुप्तजी इस संस्था के बाहर भी समाज सेवा में सक्रिय रहे उन्होंने गहोई समाज धर्मशाला निर्माण, धनुषधारी मन्दिर निर्माण तथा शहर के गोविन्द कन्या जूनियर हाई स्कूल का निर्माण कराकर समाज सेवा का अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया। वह अन्त के 6 वर्षों तक गहोई समाज में अध्यक्ष भी रहे।
शहर के प्रमुख श्मशानघाट बड़ा गाँव गेट बाहर के निर्माण व जीर्णोद्धार में उन्होंने झाँसी की जनता से जाओं रूपया एकत्रित करके एक साहसिक व अनूठा निर्माण किया। कार्य को झाँसी की जनता भुला नहीं सकती आज यह शमशानघाट मुक्तिधाम में परिवर्तित हो गया।
उन्हें श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी से बहुत लगाव व स्नेह वह संस्था में प्रतिदिन 12 से 15 घण्टे तक रहकर संस्था के उत्थान म लगे रहे। और वह श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी के पर्याय हो गये थे। झाँसी की जनता उन्हें व्यायाम शाला वाले गुप्ता जी भाई साहब के नाम से पुकारते थे। संस्था में उन्हें बड़े भाई साहब के नाम से सम्बोधित किया जाता था। वह संस्था में इतने व्यस्त रहते थे कि वह अपने घर परिवार की भी चिन्ता नही करते थे। उनकी धर्मपत्नि आदरणीय भाभीजी श्रीमीती किशोरी देवी गुप्ता उन्हें हमेशा पारिवारिक उत्तरदायित्वों से मुक्त रखती थीं और उन्हें समाज सेवा के लिये प्रेरित करती थीं। यद्यपि उनकी कोई सन्तान न थी परन्तु संस्था के सभी कार्यकर्ताओं और खिलाड़ियों व छात्रों को अपने भाई व बच्चों जैसा प्यार देते रहे। वह यह भी प्रयासरत रहे कि संस्था में अनुशासित, ईमानदार, कर्मठ व वफादार कर्यकर्त्ता रहें अतः वह आजीवन ऐसे कार्यकत्ताओं के निर्माण में भी लगे रहे। यही कारण है कि संस्था में वर्तमान समय में ईमानदार एवं समर्पित कार्यकताओं की कमी नही है और संस्था के सभी कार्यकर्त्ता, शिक्षक तथा छात्र उनके बताये मार्ग पर चलने के लिये कृत संकल्पित हैं।
वह मल्लखम फेडरेशन ऑफ इण्डिया के वरिष्ठ उपाध्यक्ष तथा उत्तर प्रदेश जिमनास्टिक्स् ऐसोसियेशन एवं उत्तर प्रदेश मल्लखम एसोसियेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे। इसके अलावा वह संस्था के बाहर अनेक समाज सेवी व खेलकूदी संस्थाओं से जुड़कर उनका मार्गदर्शन भी करते रहे।
उनकी निःस्वार्थ सेवाओं को ध्यान में रखकर झाँसी के राजनैतिक दलों ने उन्हें सांसद व विद्यायक पद के लिये टिकिट देने का प्रयास किया परन्तु उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया जो उनकी निःस्वार्थ समाज सेवा एवं उच्चकोटि के निष्काम कर्मयोग का उत्कृष्ट उदाहरण है।वास्तव में स्व० गुप्तजी ने श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी के नव निर्माण में जो कार्य किया उसमें पं० विश्वनाथजी शर्मा पूर्व सांसद एवं निदेशक वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन एवं संस्था के अन्य समर्पित कर्यकताओं का सक्रिय सहयोग एवं भूमिका रही इसी कारण गुप्तजी को कार्य करने में बल मिला।
वर्ष 2001 में वह अस्वस्थ्य रहने लगे और कैंसर से ग्रसित हो गये। उन्हें विश्राम हेतु श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी में लाया गया परन्तु गहन उपचार के बाद भी वह संस्था प्रांगण में ही 19 अगस्त 2001 को बह्मलीन हो गये।
उनकी मधुर स्मृति को बनाये रखने हेतु श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी की प्रबन्ध समिति ने प्रतिवर्ष अखिल भारतीय आमंत्रण मल्लखम्ब प्रतियोगिता आयोजित करने का निर्णय लिया है। श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर परिवार एवं सम्पूर्ण खिलाड़ी उनकी प्रथम पुण्य तिथि 19 अगस्त 2002 पर अपनी हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित करते है।

पूर्व प्राचार्य
सीताराम गुप्त स्मृति
श्री लक्ष्मी व्यायाम मन्दिर झाँसी

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